कूप-मन्डूक होना मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Koop-Mandook Hona Meaning In Hindi
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Koop-Mandook Hona Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / कूप-मन्डूक होना मुहावरे का क्या अर्थ होता है।
कूप-मन्डूक होना |
मुहावरा- "कूप-मन्डूक होना" ।
( Muhavara- Koop Mandook Hona )
अर्थ- छलांग लगाना / कूदना / सीमित अनुभव होना /कम ज्ञान का होना / किसी कार्य में निपुण ना होना
( Arth/Meaning in Hindi- Chhalang Lagana / Kudana।Simit Anubhav Hona / Kam Gyan Ka Hona।Kisi Karya Me Nipun Na Hona )
कूप-मन्डूक होना मुहावरे का व्याख्या/अर्थ इस प्रकार है-
कूप-मन्डूक होना यह एक हिंदी मुहावरा है, जिसका शाब्दिक अर्थ छलांग लगाना या कूदना होता है। अथवा किसी कार्य में निपुण ना होते हुये भी उस कार्य को कर लेना।
इस मुहावरे का मूल अर्थ यह भी होता है कि किसी कार्य को पूर्णरुप से सम्पन्न करना या किसी परिस्तिथि से बाहर निकलना।
इस मुहावरे का उपयोग हम उस समय करते है जब कोई किसी कठिनाई को पुरा कर लेता है या किसी कार्य को सहजता से समाप्त कर लेता है।
इस मुहावरें का प्रयोग हम किसी संघर्ष और उत्साह की भावना को व्यक्त करने में सार्थक रूप से कर सकते हैं ।
जैसे-
1. जब उसने विदेश यात्रा की, तो उसे एहसास हुआ कि वह अब तक कूप-मंडूक ही था।
2. अगर तुम केवल अपनी किताबों में ही डूबे रहोगे, तो कूप-मंडूक बनकर रह जाओगे।
3. हमें कूप-मंडूक न बनकर दुनिया के बारे में ज्यादा जानने की कोशिश करनी चाहिए।
4. छोटे शहर में रहते हुए वह कूप-मंडूक बन गया था, परंतु बड़े शहर में आकर उसकी सोच में विस्तार हुआ।
5. उसका विचार कूप-मंडूक जैसा था क्योंकि उसने कभी बाहर की दुनिया नहीं देखी थी।
6. कूप-मंडूक बने रहना अपने जीवन के अनुभवों को सीमित करना है।
7. हमें बच्चों को कूप-मंडूक बनने से रोकने के लिए उन्हें विभिन्न अनुभव देना चाहिए।
उदाहरण-
अपनी कक्षा में प्रथम स्थान आने पर जॉनी ने ये कहा कि- मै कूप-मन्दुक होने के बावजूद भी अच्छे अंक प्राप्त किया।
जॉनी को अपने विषयों के बारे में बहुत कम ज्ञान है। उसे हर बिषय में कम अनुभव है। फिर भी उसने परीक्षा में छलांग लगाया और प्रथम स्थान प्राप्त किया।
"कूप-मन्डूक होना" मुहावरे का वाक्य प्रयोग । Koop-Mandook Hona Muhavare Ka Vakya Prayog.
कूप-मन्डूक होना आइये हम इस मुहावरे का मतलब कुछ वाक्य प्रयोगों के माध्यम से समझते है-
वाक्य प्रयोग-1.
मिश्रा जी अपने अंतिम समय में व्यापार की ज़िम्मेदारी अपने बेटे सतीश को सौंप दीया। पर सतीश को अपने पिता जी के व्यापार के बारे में कोई अनुभव नही था कि वो व्यापार कैसे करते थे। ज़िम्मेदारी संभालाते ही सतीश ने अपना सारा समय व्यापार सिखने में लगा दिया।
सतीश अपने पिता जी के व्यापार के कार्य में निपुड़ नही था। पर सतीश अपने व्यापार में एक दिन ऐसा छलांग लगाया कि वो बहोत बड़ा व्यापारी बन गया। लोग ये कहने में तनिक भी नही हिचकिचाते थे कि सतीश कूप-मन्दुक होने के बावजूद भी अपने व्यापार में कितना आगे निकल गया। सबके ज़ुबान पर एक ही शब्द होता था कि अगर छलांग लगाओ तो सतीश जैसा।
अर्थात हम ये कह सकते है कि सतीश का व्यापार में सिमित अनुभव होना या यू कहे की व्यापार के कार्य में निपुण न होने के बाद भी उस कार्य को कर लेने को ही कूप-मन्दुक होना कहते है।
वाक्य प्रयोग- 2.
राजेश कूप-मन्दुक होने के बावजूद भी अपने सपनों को पुरा करने के लिए दिन रात मेहनत करता रहा।
राजेश जो सपना देख रह था उसके बारे में उसे सीमित अनुभव था। फिर भी उसने मेहनत करके उस मुकाम को हासील किया जिसे वो प्राप्त करना चाहता था।
राजेश अपने सपने को पुरा करके सबको ये बताने का प्रयास किया कि अगर हमें किसी विषय के बारे में जानकारी ना हो तो भी हम उस कार्य को पुरा कर सकते हैं।
यानी कि हम ये कह सकते हैं कि राजेश कूप-मन्दुक होने के बाद भी ऐसा छलांग लगाया कि उसने अपने सपने को पुरा कर लिया।
वाक्य प्रयोग- 3.
प्रोजेक्ट की चुनौतियों को देखते हुये और कूप-मन्दुक होने के बावजूद भी रतन और उसके साथियों ने मिलकर प्रोजेक्ट को पुरा करके दिखाया।
रतन और उसके साथियों को जो प्रोजेक्ट मिला था उसे कैसे पुरा करना है, उसके बारे में उन्हे तनिक भी जानकारी नही थी।
सब ने मिलकर उस प्रोजेक्ट पर खूब मेहनत किया और उनकी मेहनत रंग लायी। और उन्होंने उस प्रोजेक्ट को पुरा कर लुया।
यानी की वो लोग कूप-मन्दुक होने के बाद भी अपने कार्य को पुरा कर लिया।
कूप-मंडूक होना मुहावरे पर एक
छोटी सी कहानी-
एक छोटे से गांव में मोहन नाम का एक लड़का रहता था। मोहन बहुत होशियार और मेहनती था, लेकिन उसने कभी अपने गांव से बाहर की दुनिया नहीं देखी थी। उसके माता-पिता भी गांव के कामकाज में व्यस्त रहते थे और उन्होंने मोहन को बाहर की दुनिया दिखाने की जरूरत नहीं समझी।
मोहन के स्कूल में एक दिन एक नई शिक्षिका आईं। उन्होंने बच्चों को दुनिया के विभिन्न देशों और वहां की संस्कृतियों के बारे में
पढ़ाना शुरू किया। मोहन को यह सब नया और अनोखा लगा। उसने अपने माता-पिता से बाहर जाने की इजाजत मांगी, लेकिन
उन्होंने कहा, "तुम्हें बाहर जाने की क्या जरूरत है? हमारे गांव में सब कुछ है।"
मोहन ने शिक्षिका से अपनी समस्या बताई। शिक्षिका ने समझाया, "मोहन, तुम्हें दुनिया को देखना और समझना चाहिए। सिर्फ अपने गांव में रहकर तुम कूप-मंडूक बने रहोगे।"
शिक्षिका ने स्कूल की एक यात्रा का आयोजन किया जिसमें सभी बच्चों को शहर के एक बड़े संग्रहालय में ले जाया गया। वहां मोहन ने कई नई चीजें देखीं और बहुत कुछ सीखा। उसे एहसास हुआ कि दुनिया बहुत बड़ी है और उसे बाहर की दुनिया के बारे में भी जानना चाहिए।
वापस गांव लौटकर, मोहन ने अपने माता-पिता को अपनी यात्रा के बारे में बताया और उन्हें समझाया कि बाहर की दुनिया को जानना कितना जरूरी है। धीरे-धीरे, मोहन के माता-पिता भी यह समझ गए कि मोहन काबाहर जाना और नई चीजें सीखना उसके भविष्य के लिए कितना महत्वपूर्ण है।
इस प्रकार, मोहन ने कूप-मंडूक बने रहने के बजाय नई-नई चीजें सीखकर अपने जीवन को विस्तृत और ज्ञानवर्धक बनाया।
अपने सुझाव देने लिए आप हमें कमैंट्स जरूर करें ।
आपका दिन शुभ हो!
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Comments
Good information
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