"सावन हरे न भादों सूखे" मुहावरे का अर्थ और व्याख्या / Saavan Hare Na Bhado Sukhe Meaning In Hindi

  Sawan Hare Na Bhado Sukhe Muhavare Ka Arth Aur Vyakhya / सावन हरे ना भादों सूखे मुहावरे का अर्थ क्या होता होता है?

"मुकद्दर का सिकंदर” हिंदी कहानी / Muqaddar Ka Sikandar Hindi Story


Hindi Kahani Muqaddar Ka Sikandar / कहानी मुकद्दर का सिकंदर / मुकद्दर का सिकंदर फिल्म की कहानी ।

 
"मुकद्दर का सिकंदर” हिंदी कहानी / Muqaddar Ka Sikandar Hindi Story
Hindi Story "Muqaddar Ka Sikandar"





कहानी : "मुकद्दर का सिकंदर"


"मुकद्दर का सिकंदर" 1978 में प्रदर्शित एक प्रतिष्ठित बॉलीवुड फिल्म है, जिसका निर्देशन प्रकाश मेहरा ने किया था और इसमें मुख्य भूमिकाओं में अमिताभ बच्चन, राखी, विनोद खन्ना और रेखा थे। यह फिल्म प्रेम, वियोग, संघर्ष और त्रासदी से भरपूर है, जो इंसान के मुकद्दर और उसकी तकदीर के इर्द-गिर्द घूमती है।


"मुकद्दर का सिकंदर" फिल्म की पूरी कहानी:


फिल्म की कहानी एक अनाथ लड़के, सिकंदर (अमिताभ बच्चन), के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका जीवन दुखों और संघर्षों से भरा होता है। बचपन में ही उसके माता-पिता की मौत हो जाती है, और वह सड़कों पर भीख मांगते हुए जीवन जीने को मजबूर हो जाता है। उसे ज़िंदगी में कभी प्यार या अपनापन नहीं मिलता, सिवाय एक अमीर लड़की कामिनी (राखी) के प्यार के।


बचपन और पहली मुलाकात:


सिकंदर के साथ उसके मालिक का बहुत ही बुरा व्यवहार होता है। वह अक्सर उसे मारता-पीटता है और हर समय उसे डांटता रहता है। लेकिन सिकंदर की किस्मत बदलती है जब वह अमीर परिवार की लड़की, कामिनी से मिलता है। कामिनी उसे स्नेह और अपनापन देती है, जो उसने कभी अनुभव नहीं किया था। सिकंदर इसे प्यार समझने लगता है, और उसके दिल में कामिनी के लिए गहरा प्रेम जाग जाता है।


लेकिन, सिकंदर के लिए यह प्रेम एकतरफा होता है। कामिनी उसे सिर्फ एक दोस्त मानती है और उसे कभी रोमांटिक नजरों से नहीं देखती। वह समझती है कि सिकंदर उससे सिर्फ दोस्ती चाहता है। सिकंदर का दिल टूट जाता है, लेकिन वह कामिनी से बेइंतहा प्यार करता रहता है।


सिकंदर का उदय:


समय के साथ सिकंदर एक अमीर और शक्तिशाली इंसान बन जाता है। वह गरीबों और बेसहारा लोगों की मदद करता है, क्योंकि उसे खुद भी ज़िंदगी में बहुत संघर्ष करना पड़ा था। सिकंदर का व्यक्तित्व एक बहादुर और मेहनती इंसान का है, लेकिन उसके दिल में हमेशा दर्द और अकेलापन रहता है।


वह अमीर बन जाता है, लेकिन उसकी जिंदगी में प्यार की कमी बनी रहती है। इस दौरान उसकी मुलाकात होती है जोहरा बाई (रेखा) से, जो एक तवायफ (नाचने वाली) है। जोहरा सिकंदर से प्यार करती है, लेकिन सिकंदर का दिल अब भी कामिनी के लिए धड़कता है। जोहरा को पता है कि सिकंदर का प्यार सिर्फ कामिनी के लिए है, फिर भी वह सिकंदर से बेइंतहा मोहब्बत करती है और हमेशा उसकी परवाह करती है।


त्रिकोणात्मक प्रेम:


कहानी में एक और पात्र आता है, विशाल (विनोद खन्ना), जो सिकंदर का सबसे अच्छा दोस्त है। विशाल एक नेकदिल इंसान है, और सिकंदर के साथ हर सुख-दुख में खड़ा रहता है। विशाल भी कामिनी से प्यार करने लगता है, लेकिन वह यह नहीं जानता कि सिकंदर भी कामिनी से बेइंतहा मोहब्बत करता है। कामिनी को जब यह पता चलता है कि सिकंदर उससे प्यार करता है, तो वह उससे और दूर हो जाती है, क्योंकि वह सिकंदर के प्रति रोमांटिक भावनाएँ नहीं रखती।


कामिनी को भी विशाल से प्यार हो जाता है। जब विशाल को सिकंदर के प्यार के बारे में पता चलता है, तो वह अपने प्यार को कुर्बान कर देता है। वह सिकंदर की दोस्ती की कदर करता है और कामिनी से दूर हो जाता है।


मुकद्दर और दर्द:


कहानी का सबसे दुखद पहलू तब सामने आता है, जब सिकंदर को पता चलता है कि उसकी ज़िंदगी में जिस कामिनी के लिए वह इतना दर्द सहता रहा, वह कभी उसे चाहती ही नहीं थी। वह अपने मुकद्दर के हाथों मजबूर होकर खुद को अकेला और पराजित महसूस करता है। उसकी सारी दौलत, ताकत और रुतबा, उसे वह प्यार नहीं दिला पाते जिसकी उसे तलाश थी।


सिकंदर का दर्द तब और गहरा हो जाता है जब कामिनी और विशाल के बीच बढ़ती नजदीकियाँ उसे दिखती हैं। वह अपने सबसे अच्छे दोस्त और अपने प्यार के बीच खुद को असहाय पाता है। दूसरी ओर, जोहरा, जो उससे बेइंतहा प्यार करती है, उसकी नज़रों में हमेशा एक तवायफ ही रहती है, और सिकंदर उसे कभी उतनी अहमियत नहीं देता।


अंतिम मोड़:


कहानी का क्लाइमेक्स तब आता है, जब सिकंदर एक घातक दुर्घटना का शिकार हो जाता है। उसकी ज़िंदगी के अंतिम क्षणों में, जोहरा उसके पास होती है। सिकंदर का शरीर टूट चुका होता है, लेकिन उसका दिल अब भी कामिनी के लिए धड़कता है।


अपने अंतिम क्षणों में, सिकंदर को अपनी ज़िंदगी के सारे कड़वे और दर्दभरे सच समझ आते हैं। वह यह समझ जाता है कि ज़िंदगी में प्यार, दोस्ती और अपनापन दौलत या ताकत से नहीं खरीदा जा सकता। कामिनी और विशाल, जो सिकंदर के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण लोग थे, उसकी आंखों के सामने होते हैं, लेकिन उनके दिलों में जगह नहीं होती।


सिकंदर की मौत हो जाती है, और उसके साथ उसका सारा दर्द और संघर्ष खत्म हो जाता है। लेकिन उसकी मौत एक अमिट छाप छोड़ जाती है — एक ऐसी कहानी, जो यह दिखाती है कि मुकद्दर कभी-कभी इंसान को वो नहीं देता जो वह चाहता है, बल्कि वह देता है जो उसकी तकदीर में लिखा होता है।


अंतिम दृश्य:


फिल्म का अंत बेहद भावुक और त्रासदिक है, जहाँ सिकंदर का दुख, संघर्ष और दर्द हर किसी को महसूस होता है। जोहरा, जिसने अपनी ज़िंदगी सिकंदर के नाम कर दी थी, अंत तक उसके साथ रहती है, लेकिन उसे उसका प्यार कभी हासिल नहीं हो पाता। कामिनी और विशाल के जीवन में भी सिकंदर की मौत एक ऐसा शून्य छोड़ देती है, जिसे वे कभी नहीं भर पाते।


"मुकद्दर का सिकंदर" एक ऐसी कहानी है, जो दिखाती है कि इंसान की तकदीर और मुकद्दर उसके जीवन को किस तरह से आकार देते हैं। चाहे इंसान कितना भी अमीर या शक्तिशाली हो, अगर उसकी ज़िंदगी में प्यार और अपनापन नहीं है, तो वह हमेशा अधूरा रहता है।




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