“दूर के ढोल सुहावने लगते हैं” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Dur Ke Dhol Suhavane Lagte Hai Meaning In Hindi
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Dur Ke Dol Suhavane Hote Hai Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / दूर के ढोल सुहावने होते हैं मुहावरे का अर्थ क्या होता है?
Dur Ke Dhol Suhavane Hote Hai |
मुहावरा- “दूर के ढोल सुहावने होते हैं” ।
( Muhavara- Dur Ke Dhol Suhavane Lagte Hai )
अर्थ- दूर से सब सुन्दर प्रतित होते हैं / दूर की वस्तुएं ज्यादा पसंद आती हैं / दूर से सब आकर्षक लगता है ।
( Arth/Meaning in Hindi - Dur se sab sundar pratit hote hai / Dur ki vastuye jyada pasand aati hai / Dur se sab akarshak lagta hai )
“दूर के ढोल सुहावने होते हैं” मुहावरे का अर्थ/व्याख्या इस प्रकार है-
मुहावरा "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं" का अर्थ यह है कि जो चीज़ें या स्थितियाँ दूर से बहुत आकर्षक, सुंदर और सुखद प्रतीत होती हैं, वे वास्तविकता में उतनी अच्छी या आदर्श नहीं होतीं जितनी हम उन्हें सोचते हैं। इस मुहावरे का उपयोग तब किया जाता है जब लोग दूर से किसी वस्तु, व्यक्ति, या परिस्थिति को देखकर उसकी प्रशंसा करते हैं, लेकिन जब वे वास्तविक रूप से उसके करीब आते हैं या उसे अनुभव करते हैं, तो उसकी वास्तविक स्थिति समझ में आती है जो अक्सर उनकी अपेक्षाओं से बहुत अलग होती है।
इस मुहावरे का व्याख्या:
मानव स्वभाव ऐसा होता है कि हम दूर से किसी चीज़ को बहुत अधिक आदर्श या आकर्षक समझ लेते हैं। हमारे मन में यह धारणा बन जाती है कि दूर की वस्तुएँ या परिस्तिथियाँ बहुत अच्छी होती हैं। यह धारणा अक्सर वास्तविकता से दूर होती है, क्योंकि वास्तविकता की गहराई और कठिनाइयाँ हम दूर से नहीं देख पाते। जब हम किसी चीज़ के पास आते हैं या उसे करीब से देखते हैं, तब उसकी वास्तविक स्थिति हमारे सामने खुलकर आती है, और तब हमें एहसास होता है कि वह उतनी आदर्श नहीं थी जितनी हमने दूर से सोची थी।
उदाहरण के रूप में:
1. प्रवासी जीवन: बहुत से लोग यह सोचते हैं कि विदेश में रहने का जीवन बहुत शानदार और आरामदायक होता है। विदेश में लोग अधिक पैसे कमाते हैं, उनकी जीवनशैली बेहतर होती है, और वहाँ की सुविधाएँ भी अधिक होती हैं। लेकिन जब वही लोग विदेश जाकर वहाँ की कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करते हैं, जैसे कि नौकरी की अस्थिरता, सांस्कृतिक भिन्नता, अकेलापन, और सामाजिक समर्थन की कमी, तो उन्हें पता चलता है कि वह जीवन उतना आसान या सुखद नहीं है जितना वे सोचते थे।
2. प्रसिद्धि और सफलता: बहुत से लोग यह मानते हैं कि जो लोग प्रसिद्ध हैं, जैसे फिल्मी सितारे या बड़े उद्योगपति, उनका जीवन बहुत आरामदायक और सुखी होता है। उनकी धन-दौलत और प्रतिष्ठा से प्रभावित होकर लोग यह सोचते हैं कि वे सभी समस्याओं से मुक्त हैं। लेकिन वास्तव में, प्रसिद्धि और सफलता के साथ अनेक चुनौतियाँ, तनाव, व्यक्तिगत और सामाजिक दबाव भी आते हैं। जब लोग इस वास्तविकता का सामना करते हैं, तो उन्हें समझ में आता है कि प्रसिद्धि का जीवन उतना आदर्श नहीं होता जितना दूर से लगता है।
3. शहरी जीवन: गाँव के लोग अक्सर शहर के जीवन को आकर्षक समझते हैं। वे यह सोचते हैं कि शहर में अधिक सुविधाएँ हैं, रोजगार के अवसर अधिक हैं, और जीवन बेहतर होता है। लेकिन जब वे शहर आते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि यहाँ की भीड़, प्रदूषण, महँगाई, और जीवन की अन्य कठिनाइयाँ गाँव के सरल जीवन से अधिक जटिल हैं। यह समझ में आता है कि शहर का जीवन उतना आरामदायक और सुखद नहीं होता जितना उन्होंने दूर से सोचा था।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण:
इस मुहावरे का संबंध मनोवैज्ञानिक अवधारणा से भी है जिसे "आकर्षण का भ्रम" कहा जा सकता है। जब हम किसी चीज़ से अपरिचित होते हैं, तो हमारे दिमाग में उसके बारे में काल्पनिक धारणाएँ बन जाती हैं। हम उसकी उन विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो हमें आकर्षित करती हैं और उसकी कमियों को नजरअंदाज करते हैं। जब हम उसकी वास्तविकता का सामना करते हैं, तो वह आकर्षण समाप्त हो जाता है और वास्तविकता की कठोरता सामने आती है।
सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ:
यह मुहावरा न केवल व्यक्तिगत अनुभवों के संदर्भ में प्रासंगिक है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी इसका महत्व है। समाज में अक्सर एक वर्ग दूसरे वर्ग को देखकर उसकी जीवनशैली या सुविधाओं की प्रशंसा करता है। उदाहरण के लिए, गाँव के लोग शहर के जीवन को आदर्श मानते हैं और शहर के लोग गाँव के जीवन की सरलता की प्रशंसा करते हैं। लेकिन जब वे एक-दूसरे के जीवन को करीब से अनुभव करते हैं, तो उन्हें उसकी चुनौतियों और कठिनाइयों का भी एहसास होता है।
साहित्यिक दृष्टिकोण:
साहित्य में इस मुहावरे का उपयोग कई बार चरित्रों की मानसिकता और उनके अनुभवों को दर्शाने के लिए किया जाता है। कई कहानियों और उपन्यासों में ऐसे चरित्र होते हैं जो किसी दूर की चीज़ या व्यक्ति को देखकर उसे आदर्श मानते हैं, लेकिन जब वे उसके करीब आते हैं, तो उनकी अपेक्षाएँ टूट जाती हैं। इस प्रकार, यह मुहावरा साहित्यिक रचनाओं में पात्रों की मानसिकता और भावनाओं को गहराई से व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।
सारांश:
"दूर के ढोल सुहावने लगते हैं" मुहावरा यह सिखाता है कि हमें किसी चीज़ या स्थिति को देखकर तुरंत उसकी प्रशंसा नहीं करनी चाहिए, बल्कि उसके वास्तविक स्वरूप को समझने का प्रयास करना चाहिए। जब हम किसी चीज़ को दूर से देखते हैं, तो उसकी केवल बाहरी सुंदरता या आकर्षण पर ध्यान देते हैं, लेकिन जब हम उसके करीब आते हैं, तो उसकी वास्तविक कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ सामने आती हैं। इस मुहावरे का संदेश यही है कि वास्तविकता और कल्पना में अंतर होता है, और हमें किसी भी चीज़ को समझने से पहले उसकी पूरी जानकारी हासिल करनी चाहिए।
यह मुहावरा जीवन के हर क्षेत्र में प्रासंगिक है, चाहे वह व्यक्तिगत हो, सामाजिक हो, या व्यावसायिक।
“दूर के ढोल सुहावने होते हैं” मुहावरे का वाक्य प्रयोग / Dur Ke Dhol Suhavane Hote Hai Muhavare Ka Vakya Prayog.
“दूर के ढोल सुहावने होते हैं” इस मुहावरे का अर्थ नीचे दिए गये कुछ वाक्य प्रयोगों के माध्यम से समझ सकते हैं, जो कि इस प्रकार से है-
1. शहर का जीवन दूर से आकर्षक लगता है, लेकिन असल में "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं" वाली बात है।
2. विदेश जाने का सपना हर किसी का होता है, लेकिन वहाँ की चुनौतियाँ देखकर समझ आता है कि "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं"।
3. बड़े उद्योगपति का जीवन देखकर लगता है कि उनके पास सब कुछ है, लेकिन "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं" की तरह उनके भी कई संघर्ष होते हैं।
4. फिल्मी सितारों की चमक-धमक देखकर लोग सोचते हैं कि उनका जीवन परफेक्ट है, मगर "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं"।
5. गाँव में रहने वाले लोग शहर की चकाचौंध देखकर आकर्षित होते हैं, पर असल में "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं"।
6. किसी दूसरे की नौकरी देखकर लगता है कि वह बहुत आसान है, लेकिन अंदर की स्थिति पता चलने पर लगता है कि "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं"।
7. हमें लगता है कि उच्च पद पर बैठे लोगों का जीवन बहुत सरल है, परंतु उनके जिम्मेदारियों का भार देखकर "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं"।
8. महंगी गाड़ियों और बड़े घरों को देखकर हम सोचते हैं कि उनके मालिक बहुत खुशहाल हैं, परंतु "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं"।
9. विदेशों में पढ़ाई करना सुनने में बहुत अच्छा लगता है, लेकिन वहाँ की कठिनाइयों से पता चलता है कि "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं"।
10. सोशल मीडिया पर लोग अपनी खुशहाल जिंदगी दिखाते हैं, लेकिन असल में "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं"।
11. राहुल हमेशा से विदेश जाने का सपना देखता था। उसे लगता था कि वहाँ की जिंदगी बेहद आरामदायक और सुखद होगी। आखिरकार, उसे नौकरी मिल गई और वह विदेश चला गया। कुछ महीनों बाद, जब उसने वहाँ की अकेलापन, काम का तनाव, और उच्च जीवन-यापन खर्च का सामना किया, तो उसे एहसास हुआ कि "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं"। विदेश का जीवन उतना आसान नहीं था जितना उसने सोचा था।
12. सुमन को फिल्मी सितारों का जीवन बहुत आकर्षक लगता था। वह अक्सर उनके महंगे कपड़े, शानदार घर और गाड़ियों को देखकर सोचती कि उनका जीवन कितना शानदार है। एक दिन उसे एक अभिनेता का इंटरव्यू देखने को मिला जिसमें उसने अपने निजी संघर्ष और तनाव की बात की। तब सुमन को समझ में आया कि "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं"।
13. रामू गाँव में रहता था और शहर की चकाचौंध देखकर बहुत प्रभावित था। उसने सोचा कि शहर में जाकर उसे अच्छा काम मिलेगा और उसकी जिंदगी सुधर जाएगी। वह शहर चला गया, लेकिन जब वहाँ भीड़, प्रदूषण, और नौकरी की कठिनाइयों का सामना किया, तो उसे महसूस हुआ कि "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं"। गाँव का सरल जीवन ही बेहतर था।
14. नीता अपने दोस्तों के सोशल मीडिया पोस्ट देखकर अक्सर सोचती कि उनकी जिंदगी कितनी खुशहाल है। सुंदर तस्वीरें, शानदार छुट्टियाँ और पार्टियों की झलक देखकर उसे अपनी जिंदगी बहुत साधारण लगने लगी। लेकिन जब उसने अपने एक दोस्त से बात की, तो उसने बताया कि असल में उसकी जिंदगी में कई समस्याएँ हैं, जो सोशल मीडिया पर नहीं दिखतीं। नीता को समझ आया कि "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं"।
15. अंकित अपने बॉस के उच्च पद और शानदार जीवनशैली से प्रभावित था। उसे लगता था कि बॉस की जिंदगी में कोई चिंता नहीं होगी और वह बेहद खुशहाल होगा। एक दिन, बॉस ने अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक तनाव के बारे में बात की। अंकित को तब एहसास हुआ कि "दूर के ढोल सुहावने लगते हैं"। उच्च पद के साथ भी कई चुनौतियाँ और जिम्मेदारियाँ आती हैं।
दोस्तों, हम आशा करते हैं कि आपको इस मुहावरे का अर्थ समझ में आ गया होगा । अपने सुझाव देने के लिए हमें कमैंट्स जरूर करें ।
आपका दिन शुभ हो । 😊
धन्यवाद । 🙏
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