“कचूमर निकलना” मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग / Kachumar Nikalna Meaning In Hindi
Kachumar Nikalna Muhavare Ka Arth Aur Vakya Prayog / कचूमर निकलना मुहावरे का क्या अर्थ होता है?
मुहावरा- “कचूमर निकलना”।
(Muhavara- Kachumar Nikalna)
अर्थ- खूब पीटना / किसी का बुरा हाल हो जाना या कर देना / अत्यधिक शारीरिक पीड़ा होना ।
(Arth/Meaning In Hindi- Khub Pitna / Kisi Ka Bura Hal Ho Jana Ya Kar Dena / Atyadhik Sharirik Pida Dena)
“कचूमर निकलना” मुहावरे का अर्थ/व्याख्या इस प्रकार है-
अर्थ:
‘कचूमर निकलना’ एक प्रचलित हिंदी मुहावरा है जिसका अर्थ होता है – बहुत ज़्यादा पीटना, किसी को इतना कष्ट देना या मारना कि वह पूरी तरह टूट जाए, या किसी का बुरा हाल हो जाना। यह मुहावरा शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक रूप से बहुत अधिक थक जाने, पीड़ित होने या पीट दिए जाने के भाव को व्यक्त करता है।
व्याख्या:
हिंदी भाषा में मुहावरे न केवल भाषा को प्रभावशाली बनाते हैं, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य को भी दर्शाते हैं। "कचूमर निकलना" एक ऐसा ही मुहावरा है, जो आम बोलचाल की भाषा में बड़े ही व्यंग्यात्मक और रोचक अंदाज़ में प्रयुक्त होता है। यह मुहावरा किसी व्यक्ति की हालत बहुत ही खराब हो जाने को दर्शाता है। जब कोई व्यक्ति किसी कार्य से अत्यधिक थक जाता है, ज़्यादा पिटाई से बेहाल हो जाता है, या किसी कठिन परिस्थिति में पूरी तरह टूट जाता है, तब इस मुहावरे का उपयोग किया जाता है।
"कचूमर" शब्द का प्रयोग आमतौर पर खाने की चीज़ के लिए किया जाता है जो मसालों के साथ बारीक कटी होती है, जैसे टमाटर-प्याज का कचूमर। जब किसी को बहुत ज़्यादा मारा जाता है या पीड़ा दी जाती है, तो उसकी हालत भी ऐसी ही बुरी हो जाती है, जैसे किसी चीज़ को पूरी तरह मसलकर रख दिया गया हो। इसी से यह मुहावरा जन्मा है – "कचूमर निकलना"।
यह मुहावरा केवल शारीरिक पीड़ा तक सीमित नहीं है। जब कोई मानसिक तनाव, ज़िम्मेदारियाँ या काम का बोझ इतना अधिक हो कि व्यक्ति थककर चूर हो जाए, तब भी कहा जाता है कि उसका कचूमर निकल गया। उदाहरण के लिए, एक छात्र परीक्षा की तैयारी करते-करते थक जाए, या कोई कर्मचारी देर रात तक काम करके अत्यधिक थक जाए, तब यह मुहावरा उसकी दशा को दर्शाने के लिए इस्तेमाल होता है।
“कचूमर निकालना” मुहावरे का वाक्य प्रयोग / Kachumar Nikalna Muhavare Ka Vakya Prayog.
1. बच्चों ने मिलकर चोर की इतनी पिटाई की कि उसका कचूमर निकल गया।
2. ऑफिस का इतना काम था कि शाम तक मेरा तो कचूमर ही निकल गया।
3. गर्मी में बिना पंखे के पढ़ाई कर-करके छात्रों का कचूमर निकल गया।
4. पुलिस ने चोरों को पकड़ कर ऐसा पीटा कि उनका कचूमर निकल गया।
5. मैच में टीम की इतनी बुरी हार हुई कि खिलाड़ियों का मानसिक कचूमर निकल गया।
6. बाजार मे लोगों की भिड़ ने मोबाइल चोर का कचूमर निकाल दिया ।
7. जो भी व्यक्ति महिलाओं के साथ अभद्रता करेगा उसका कचूमर निकाल दिया जायेगा ।
8. भोला ने कहा कि जब मै घूप में काम कर रहा था तो मेरा तो कचूमर निकल गया ।
निष्कर्ष:
"कचूमर निकलना" एक अत्यंत प्रभावशाली और व्यावहारिक मुहावरा है, जो किसी व्यक्ति की चरम थकावट, शारीरिक क्षति या मानसिक पीड़ा को चित्रित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस मुहावरे के माध्यम से हम बिना ज़्यादा शब्दों के किसी की दशा का सटीक और सजीव चित्रण कर सकते हैं। यही मुहावरों की सुंदरता और शक्ति है – वे भाषा को अभिव्यक्तिपूर्ण, रोचक और प्रभावशाली बनाते हैं।
कचूमर निकालना मुहावरे पर एक छोटी सी कहानी-
गाँव गोकुलपुर अपने शांत वातावरण और ईमानदार लोगों के लिए जाना जाता था। लोग एक-दूसरे की मदद करते, खेतों में साथ काम करते और शाम को चौपाल पर बैठकर किस्से-कहानियाँ सुनते। लेकिन कुछ दिनों से गाँव में चोरी की घटनाएँ बढ़ गई थीं। कभी किसी के घर से बर्तन गायब हो जाते, तो कभी किसी के खलिहान से अनाज।
गाँव वालों की चिंता बढ़ने लगी। "ये जरूर बाहर का कोई चोर है," चौधरी साहब बोले। सभी ने तय किया कि अब चौकसी बढ़ाई जाएगी। रात में बारी-बारी से पहरा देने की योजना बनाई गई।
एक रात रामू, श्यामू और किशन पहरे पर थे। जैसे ही आधी रात हुई, एक संदिग्ध व्यक्ति खेतों के बीच छिपकर गाँव में दाखिल हुआ। वह दबे पाँव रामदयाल के घर की दीवार फाँदकर अंदर घुसा। लेकिन वह नहीं जानता था कि उस घर में एक कुत्ता भी है, जो हल्की-सी आहट पर भौंकने लगा।
कुत्ते की आवाज़ सुनते ही पहरेदार दौड़े। रामदयाल भी जाग गया और उसने गाँव वालों को आवाज़ दी – “चोर पकड़ा गया है!” देखते ही देखते पूरा गाँव लाठी-डंडा लेकर जमा हो गया।
चोर भागने की कोशिश कर रहा था, पर गाँव वालों ने उसे चारों ओर से घेर लिया। “चोरी करता है हमारे गाँव में? आज तुझे सबक सिखाएंगे!” रामू गुस्से में बोला।
गाँव वालों ने मिलकर चोर की जमकर धुनाई की। कोई लाठी से मार रहा था, कोई चप्पल से। चोर चीखता रहा, “माफ कर दो, गलती हो गई!” लेकिन गाँव वाले तो बहुत नाराज़ थे। उसकी हालत इतनी खराब हो गई कि कपड़े फट गए, चेहरा सूज गया और चलने की ताकत भी नहीं बची।
श्यामू बोला, “लगता है इसका तो कचूमर ही निकल गया!”
सुबह होते ही पुलिस को बुलाया गया और चोर को हवाले कर दिया गया। पूछताछ में पता चला कि वह पास के कस्बे का पुराना अपराधी था, जो अलग-अलग गाँवों में चोरी करता फिरता था। पुलिस ने गाँव वालों की बहादुरी की तारीफ की और कहा, “अगर हर गाँव जागरूक हो जाए, तो चोरों की हिम्मत ही नहीं होगी।”
उस दिन के बाद गाँव में कभी चोरी नहीं हुई। लोग कहने लगे – “जो चोर गोकुलपुर आएगा, उसका कचूमर निकल जाएगा!”
नैतिक सीख:
सजग और एकजुट समाज ही अपने आप को सुरक्षित रख सकता है। बुराई का सामना दृढ़ता और समझदारी से किया जाए तो उसका अंत निश्चित है।
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